2024-11-12 HaiPress
(फोटो क्रेडिट-श्रद्धा चौहान)
नई दिल्ली:
दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में छोटा गुजरात बसा हुआ है. दरअसल यहां एक लाख से ऊपर गुजराती समाज के लोग रहते हैं. जब पूरा देश बदलाव के दौर से गुजर रहा है,तब भी इस समाज में महिलाओं की स्थिति वक्त के साथ ज्यादा बदली नहीं है. अपने रीति रिवाजों,भाषा को जीवित रखते इस समाज में महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार से जुड़े कोर्स शुरू करवाने की आवश्यकता महसूस होती है.
इस इलाके में गुजराती समाज के लोगों की संख्या एक लाख से ऊपर है और ये लोग अपनी बस्ती को मेडले कहते हैं.
फोटो क्रेडिट- श्रद्धा चौहान
मेडले में हमें लगभग सत्तर साल की अम्बा मिली,वह कहती हैं कि मुझे यहां रहते लगभग पचास साल हो गए होंगे. 12 साल की उम्र में जब मैं यहां शादी होकर आई,तब इस इलाके में बस वीरान जंगल ही था. दिन में भी लोग इस इलाके में आने से डरते थे,अब हालात यह हैं कि यहां लोगों की बेहिसाब बसासत की वजह से पैर रखने की भी जगह नही है. यहां हमारे साथ या हमारे बाद में आए गुजराती समाज के लोगों की तीसरी पीढ़ी भी रहने लगी है.
दीपा लोगों के घर में साफ सफाई का काम करती हैं,वह कहती हैं कि मैं घर में अपने 2 साल के बच्चे को छोड़कर काम करने आती हूं. वह कहती हैं कि मैं यह काम शौक में नही करती,घर में मेरा पति दिन में नशे की हालत में रहता है,घरों में साफ सफाई के बाद मिलने वाले सात हजार रुपयों से घर का गुजारा चलता है.
तीस वर्षीय पुष्पा आदर्शनगर बाजार में सब्जी का ठेला लगाती हैं,वह कहती हैं कि पढ़ाई से बेहतर हमारे यहां अब भी खुद के काम को समझा जाता है इसलिए वक्त से पहले ही लड़के दिहाड़ी मजदूरी और लड़कियां साफ सफाई के काम में लग जाती हैं. वह कहती हैं कि हमारे समाज की लड़कियों में अब सोशल मीडिया का प्रभाव साफ दिखने लगा है,शादी से पहले वह जीन्स टॉप पहने दिखने लगी हैं.
हालांकि शादी के बाद वह साड़ी ही पहनती हैं. गुजराती त्योहारों पर बात करते पुष्पा के साथ ही सब्जी का ठेला लगाने वाली चालीस वर्षीय चंपा कहती हैं कि हमने अपने त्योहारों की धूम धाम बरकरार रखने के लिए पांच साल पहले ही मेडले में चंदे से मंदिर बनवाया है,अपना सबसे लोकप्रिय त्योहार नवरात्रि हम वहीं मनाते हैं और उसमें किया जाने वाला गरबा नृत्य भी सभी युवक युवतियां धूमधाम के साथ वहीं करते हैं.
फोटो क्रेडिट- श्रद्धा चौहान
आगे बात करते चंपा कहती हैं कि समय के साथ गुजराती समाज की महिलाएं अपनी सेहत को लेकर जागरूक होती आई हैं,कपड़े की जगह अब लगभग सभी महिलाएं पीरियड्स होने पर पेड का ही इस्तेमाल करती हैं. वह कहती हैं कि मेडले में कोई अलग अस्पताल नही है,जहांगीरपुरी का मोहल्ला क्लिनिक ही बीमारी में मेडले के लोगों का सहारा है.
45 वर्षीय अशोक सोलंकी की मेडले के पास ही परचून की दुकान है,वह सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय रहते हैं. अशोक कहते हैं कि यहां बसी हुई अधिकतर आबादी गुजरात के पाटन जिले से है और शिक्षित न होने की वजह से यहां के लोगों को रोजगार के ज्यादा अवसर प्राप्त नही होते. बेरोजगारी का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हमारे लोगों की यहां रहने वाली लगभग एक लाख की आबादी में मुश्किल से दस लोग सरकारी नौकरी में होंगे.
राजीव नगर एक्सटेंशन में स्थित वंडर फाउंडेशन ट्रस्ट की अध्यक्ष श्रद्धा चौहान कहती हैं कि वह दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाली महिलाओं के लिए स्वयं सहायता समूह चला रही हैं. इसमें हम महिलाओं को सिलाई,ब्यूटी पार्लर संबंधित कार्य सिखाने के बाद,छोटी धनराशि देकर स्वरोजगार शुरू करने का मौका देते हैं. वह कहती हैं कि जहाँगीर पुरी के पास मेडले में रहने रहने वाली महिलाओं की भी यह काम सीख कर आगे बढ़ने में रुचि है और अब तक तीन चार महिलाओं ने हमसे यह काम सीखकर लोगों के घर में साफ सफाई का काम छोड़कर अपना सिलाई और ब्यूटी पार्लर का काम शुरू कर लिया है.