2024-12-18 HaiPress
देश में कुल बीड़ी मजदूरों की संख्या करीब 80 लाख होने का अनुमान है.
नई दिल्ली:
देश का एक प्रमुख घरेलू रोजगार,जिसमें महिलाओं की सबसे ज्यादा भागीदारी रही है,अब दम तोड़ रहा है. बीड़ी उत्पादन को लेकर सरकार की नीतियों के चलते यह कुटीर उद्योग अब बुरे हाल में है. एक तरफ जहां बीड़ी उद्योग पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भारी बोझ है वहीं कई सख्त नियम भी लागू हैं. बीड़ी मजदूरों को बहुत कम पारिश्रमिक मिल रहा है. इससे परेशान ग्रामीण अंचलों के मजदूर बीड़ी बनाना त्यागकर रोजगार के लिए शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं. श्रम मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2023 के मुताबिक देश में बीड़ी बनाने वाले रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड मजदूरों की संख्या करीब 80 लाख है. इनमें 72 प्रतिशत से अधिक महिला कामगार हैं.
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड सहित देश के कई हिस्सों में पहले निम्न वर्ग के ग्रामीणों की बड़ी आबादी बीड़ी बनाने का काम करके अपना गुजारा करती थी. इस काम से परिवारों के कई सदस्यों को रोजगार मिलता था,लेकिन अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं.
उन्होंने कहा कि,सागर में और कोई उद्योग नहीं है इसलिए बीड़ी बनाने के अलावा हमारे पास रोजगार का कोई अन्य साधन नहीं है.दूसरे किसी विकल्प की तरफ जाते हैं तो और कम पैसा मिलता है,इसलिए बीड़ी बनाना ही ठीक लगता है.
विजय कुमार से जब पूछा गया कि क्या बीड़ी बनाने से स्वास्थ्य संबंधी कोई दिक्कत होती है,तो उन्होंने कहा कि,इससे कोई परेशानी नहीं होती. बीड़ी बनाने से कोई बीमारी नहीं होती. बीड़ी पीने से बीमारी होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि,बीड़ी से कोई बीमारी नहीं होती. यदि 50 साल का आदमी भी बीड़ी पीता है तो उसे कोई बीमारी नहीं होती. सिगरेट,गुटखा के शौकीनों को पांच-छह साल में ही बीमारियां हो जाती हैं. बीड़ी से बीमारियां क्यों नहीं होतीं? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि,बीड़ी में कोई केमिकल नहीं होता. सिगरेट और गुटखा में केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है.
भगवान दास ने बताया कि जब से गुटखा का प्रचलन बढ़ा है तब से लोगों ने बीड़ी पीना भी कम कर दिया है. गुटखा ज्यादा हानिकारक होने के बावजूद लोग वह खाते हैं. हालांकि देहातों में लोग बीड़ी पीना ही पसंद करते हैं.
बीड़ी श्रमिक राजकुमारी खटीक ने बताया कि वे करीब 30 साल से बीड़ी बना रही हैं. बीड़ी की मजदूरी कम है जबकि महंगाई बहुत बढ़ चुकी है. महंगाई के हिसाब से रेट बढ़ना चाहिए. रोज बमुश्किल एक हजार बीड़ी बना पाते हैं. बेटा फल बेचता है.
बीड़ी श्रमिकों की संख्या घटने के पीछे रहीम ने कहा कि,इसका कारण मजदूरी कम होना है. एक हजार बीड़ी का पारिश्रमिक 100 रुपये दिया जाता है. दिन भर में कोई 100 रुपये कमाएगा तो उसका खर्च कैसे चलेगा. मजदूरी करने के लिए लोग बाह जा रहे हैं,पलायन कर रहे हैं. बीड़ी की कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं. पहले घरेलू व्यवसाय की तरह लोग घरों में बीड़ी बनाते थे,अब उसकी स्थिति बहुत खराब है. महिलाएं अब बीड़ी बनाने की जगह दूसरे काम कर रही हैं.
बीड़ी उद्योग को पुनर्जीवन देने के लिए उपाय के बारे में पूछने पर रहीम ने कहा कि,सरकार को बीड़ी कंपनियों को सुविधाएं देनी चाहिए. टैक्स कम किया जाना चाहिए. इसके अलावा 'दो नंबर' का धंधा करने वालों पर सरकार लगाम लगाए. ईमानदार कंपनियां इन्हीं लोगों के कारण नुकसान में हैं. उन्होंने कहा कि गुटखा खाने वाले लोग बढ़ रहे हैं जबकि यह बहुत हानिकारक है.
उन्होंने कहा कि बीड़ी अधिकांश औरतें ही बनाती हैं. जब से लाड़ली बहना योजना और इसी तरह की दूसरी योजनाएं चलने लगीं तब से उन्होंने बीड़ी बनाना बंद कर दिया है. पहले मजदूर बीड़ी बनाकर ही बच्चों को पालते थे,उन्हें पढ़ाते थे,अपनी प्रापर्टी भी बना लेते थे. लेकिन अब वे यह सब नहीं कर पाते हैं. पहले महंगाई कम थी. जितनी महंगाई बढ़ गई,उतनी इन मजदूरों की आय नहीं बढ़ सकी.
उन्होंने कहा कि गुटखा में कुछ ऐसी आर्टिफीशियल चीजें मिलाई जाती हैं जिससे उसका टेस्ट तो अच्छा बनता है,लेकिन वह स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक होता है. नुकसान के लिहाज से बीड़ी और सिगरेट में अंतर के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि,सिगरेट की फैक्ट्री में मैन्युफैक्चरिंग होती है. उसे मशीनों से बनाया जाता है. जबकि बीड़ी को मजदूर 100 फीसदी हाथ से बनाते हैं. इसमें उपयोग की जाने वाली चीजें आर्गेनिक हैं. तेंदू पत्ता जंगल में होता है और तंबाकू की खेती किसान करते हैं. उसमें कोई आर्टिफीशियल चीजें मिलाई नहीं जातीं. बीड़ी 100 प्रतिशत आर्गेनिक है.
मोहम्मद आरिफ ने कहा कि,बीड़ी बनाना एक हुनर है. नई पीढ़ी में बीड़ी बनाने का शौक कम हुआ है. वे इस काम को छोटा समझते हैं. सरकार के बीड़ी उत्पादन को लेकर नियम भी काफी सख्त हैं. बीड़ृी का सामान खरीदने,बीड़ी बेचने में कई सख्त नियमों के कारण छोटी यूनिटों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. टैक्स कम मिलने से राहत मिल सकती है. इससे रेट कम हो सकते हैं और हम मजदूरों की मजदूरी बढ़ा सकते हैं. मजदूरी तभी बढ़ा सकते हैं जब फायदा ज्यादा मिल सके. जब मजदूरी ज्यादा मिलेगी,इसमें रोजगार मिलेगा तो लोग इस काम को फिर से अपना सकते हैं. दूसरे कामों में मजदूरी काफी अच्छी मिल जाती है. मनरेगा और दूसरी सरकारी योजनाओं में भी मजदूरी मिलती है.
पूर्व में बीड़ी पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क न्यूनतम था. इसके अलावा कई राज्य सरकारों ने श्रमिकों की आजीविका का समर्थन करने के लिए बीड़ी को बिक्री कर से छूट दी थी. लेकिन जीएसटी के तहत बीड़ी को 'डिमेरिट' माल के रूप में वर्गीकृत किया गया,जिससे यह 28% के उच्चतम जीएसटी रेट के अधीन आ गया.
बीड़ी उद्योग बीड़ी पर जीएसटी की दर घटाकर 5% करने की अपील कर रहा है. उसका कहना है कि इसे अन्य कुटीर उद्योग उत्पादों के लिए तय जीएसटी दर की सीमा में लाया जाए. यह कदम रजिस्टर्ड मैन्युफैक्चरर्स को राहत देने वाला होगा. इससे औपचारिक रोजगार को प्रोत्साहन मिलेगा और इस सेक्टर के मजदूरों को कल्याण योजनाओं का लाभ मिलेगा. जीएसटी को कम करने से उन लाखों श्रमिकों और परिवारों के लिए अधिक न्यायसंगत और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित होगा जो अपनी आजीविका के लिए बीड़ी उद्योग पर निर्भर हैं.
एक सदी से भी ज्यादा अरसे पहले से बीड़ी उद्योग ने खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है. बीड़ी के काम पर निर्भर परिवार अपने बच्चों को शिक्षित करने में सक्षम रहे हैं. बीड़ी मजदूर परिवारों के बच्चों में से कुछ डॉक्टर,इंजीनियर,सरकारी अधिकारी और अन्य क्षेत्रों में प्रोफेशनल बने हैं. पीढ़ियों के साथ यह उत्थान इस बात का एक सशक्त उदाहरण है कि कैसे बीड़ी उद्योग जैसे पारंपरिक,जमीनी स्तर के उद्योग सामाजिक-आर्थिक प्रगति में सहभागी रहे हैं.